लेखनी कहानी -31-Mar-2024
शीर्षक - कर्मों का फल निश्चित हैं।
मेरा भाग्य और कुदरत के रंग एक सच है। जीवन में हमारे सभी कर्मों का फल निश्चित है। जीवन तो एक संघर्ष और राह का नाम हैं। हम सभी जीवन में जन्म लेते हैं जीवन जीते हैं और जीवन में अच्छे बुरे कर्मों का फल निश्चित होता है अब यह पता नहीं हमें कब भोग भोगना पड़ता है परंतु हम सभी को फिर भी हम सभी अपने स्वार्थ और लालच के साथ-साथ सभी कर्म करते हैं परंतु कुछ करना हम मजबूरी में चाहत में मोहब्बत में इश्क में भी करती है क्योंकि इश्क में मोहब्बत में चाहत में जब भी हम कोई कर्म करते हैं तब शायद ताली दो ने हाथों से बजती है एक हाथ से नहीं बजती फिर भी हम सभी को जीवन तो जीना ही पड़ता है और समय के साथ-साथ परिस्थितियों के साथ समझौता भी करना पड़ता है आओ हम सभी कर्मों का फल निश्चित होता है पढ़ते हैं
रानी एक सुंदर और अल्हड़ किस्म की लड़की थी। आधुनिक सोच समझ की जीवन धारा थी और जिस्म से गदराये बदन की मांसल देह वाली रानी बहुत खूबसूरत थी। और वह जीवन प्रेम इश्क मोहब्बत को एक खेल समझती थी। और भी बचपन से जिस परिवेश में रही थी उसे परिवेश में उसको केवल स्वार्थ और मस्त रहना ही सिखाया था अपनी सुंदरता पर रानी को घमंड था क्योंकि वह समझती थी कि जीवन में मर्द की जरूरत शरीर होता है उसके साथ बचपन में जो घटनाएं घटी थी उसे घटनाओं ने उसे जीवन के सत्य से बहुत कुछ सिखा दिया था इसलिए रानी मर्द को एक स्वार्थ और मतलबी रूप में देखती थी। मेरा भाग्य और कुदरत के रंग में कर्मों का फल निश्चित है वह समझती थी परंतु जब वह अपने अतीत को अकेले में सोचती थी तो वह अपने आप में ही अपने आप से घृणा करती थी क्योंकि बचपन में भी बिन मां बाप की अपनी मुंह बोली पड़ोस की चाचा चाची के साथ परवरिश हुई थी और जब वह जवानी की दहलीज पर थी। रानी को मुंह बोले चाचा ने उसकी जिंदगी तार तार कर दी थी। रानी को रिश्तो के नाम से कुछ नफरत सी हो चुकी थी परंतु जीवन में पांचो उंगलियां एक समान नहीं होती फिर भी हम सभी जब किसी घटना का शिकार हो जाती है तब हम एक विश्वास नाम के शब्द को भूल से जाते हैं और फिर रानी तो बहुत सुंदर और अपने आप में मांसल देह से भरपूर जवान नारी थी।
रानी अब जवान हो चुकी थी और वह अपने चाचा चाची की चंगूल से छूटकर शहर की ओर रवाना हो चुकी थी और वह बिना बताए बस में बैठ चुकी है उसे शायद यह भी नहीं मालूम था कि वह किस शहर में और क्यों जा रही है और जब बस में उसे टिकट के लिए पूछा तो उसने कहा उसके पास पैसे नहीं है तब कंडक्टर ने उसे उसके गांव से पहले के शहर में उतार दिया और वह इस शहर में उतरकर एक पेड़ की छांव में जाकर बैठ गई इस शहर के पास से एक महिला जो कि इस शहर में रहती थी उसके पास आई और से बोली आप कैसे बैठे हैं तब रानी ने अपनी आप बीती कह सुनाई।
तब रानी को वह नारी कहती मेरा नाम राजो है। और मैं एक तवायफ सच तो यह है जीवन में हम सभी को अपने-अपने कर्मों का फल निश्चित मिलता है पता नहीं हमने भी कोई कर्म कभी जीवन में करें होंगे जो हम उसका फल भोग रहे हैं। रानी और राजो अब दोनों दोस्त बन चुकी थी। रानी अब राजो के साथ उसके घर चल पड़ती है। जब रानी राजो के घर पहुंचती है। तब राजो रानी से कहती है। तुम भी नहा धोकर प्यार हो जाओ और कुछ खा लीजिए रानी नहा धोकर कुछ पैसे कपड़े पहन लेती है जिससे उसके जिस्म का निखार और भी बढ़ जाता है।
रानी और राजो अब अपने जीवन जिस्मफरोशी के धंधे में उतर जाती है और वह हर रोज नए आदमियों के साथ अपने जीवन को समर्पित कर देंती। समय का जीवन चक्र बहुत बलवान होता है और एक आदमी रानी को अपने घर का वारिस देने के लिए एक अनुबंध करता है और वह आदमी उसे लेकर दिल्ली आ जाता है जब वह दिल्ली आ रहा होता है तब रानी क्या देखती है। उसका मुंह बोला चाचा हाथ पैरों से अपाहिज चाचा चाची के साथ सिग्नल पर भीख मांग रहा होता है। रानी के मन में कुछ खुशी सी होती है और कहती है कर्मों का फल निश्चित है और कभी ना कभी अपनी गलतियों की सजा जरूर मिलती है और जो आदमी उसे वारिस के लिए अनुबंध करके ले जा रहा होता है। वह एक अच्छे पैसे वाला इंसान होता है।
वह रानी को अपने शहर दिल्ली में एक डॉक्टर के पास ले जाता है और उसे रानी का चेकअप कराता है और पूछता है डॉक्टर यह मेरे बच्चे की मां बन सकती है या नहीं डॉक्टर कहता है हां यह शरीर के रूप सबको स्वस्थ है और यह मां बन सकती है और रानी उसे व्यक्ति के साथ रोज हम बिस्तर होती थी और समय के साथ-साथ है उसे घर के लिए एक सुंदर लड़की को जन्म देती है वह आदमी बहुत खुश होता है और वह उसे लड़की को ले जाकर अपनी धर्मपत्नी को दे देता है और रानी को अनुबंध के अनुसार उसकी कीमत को देकर उसे छोड़ देता है। अब रानी ऐसे दोराहे पर खड़ी थी। कि अब उसे दिल्ली जैसे बड़े शहर में कोई पहचान न थी और अब वह लाखों रुपए की मालकिन थी और शरीर के रूप से गदराये बदन की तो थी।
रानी अब कुछ समझदार हो चुकी थी उसने उस पैसे को एक एक दुकान के रूप में बदल दिया और वह दुकान उसने रेडीमेड कपड़ों की बनाई और उसे दुकान में उसने कुछ लड़कियों को ही रख लिया मेरा भाग्य और कुदरत के रंग सच है परंतु कर्मों का फल में निश्चित है रानी अब समझ चुकी थी कि जीवन में कुछ भी स्थाई नहीं है। और समय के साथ-साथ रानी जिस दुकान पर अपना बिजनेस करने लगी थी उसी दुकान के पड़ोस में उसी का हम उम्र एक नौजवान भी एक दुकान करता था और रानी अपने अतीत को भूलकर उसे नौजवान से विवाह का प्रस्ताव रखती है और वह रानी को पसंद करके उससे विवाह कर लेता है।
रानी विवाह के बाद एक अपना घर बसा लेती है और एक साल के बाद रानी एक लड़की क जन्म देती है। और रानी अपने जीवन में खुशहाल जिंदगी जीने लगती है रानी समझ चुकी होती है कि मेरा भाग्य और कुदरत के रंग एक सच है परंतु हम सभी की कर्मों का फल निश्चित है और वह अपनी जिंदगी की अतीत को अपने मन में कैद कर लेती है। और रानी अपनी बेटी के साथ अपने पति के साथ मस्त जिंदगी जीने लगती है आज भी उसे अतीत कभी-कभी डरता था परंतु रानी अपने आप को अपने नाम और काम के साथ उसे भूल जाती है वह सोचती है जीवन में हर आदमी को अपने आज में जीना चाहिए ना कि कल की सोच के साथ क्योंकि परिस्थितियों और हम जीवन के अनुसार कुदरत के और भाग्य के अनुसार जीवन जीते हैं।
हमारी कहानी कर्मों का फल निश्चित है यह एक कल्पना और मन भावन से लिखी काल्पनिक पटकथा है जिसका किसी के जीवन और नाम से कोई इत्तेफाक नहीं है परंतु हमारे जीवन में किसी की जीवन से ऐसी घटना मेल खाती है तो यह भी एक इत्तेफाक होगा और हमारी कहानी सभी पाठक जीवन की परिस्थितियों के साथ पड़े साथ ही यह निश्चित है कि हम सभी को कर्मों का फल निश्चित ही भोगना पड़ता है बस समय के अनुसार कर्म फल और हम जीवन की राह पर जिंदगी में कर्मों का फल निश्चित मिलता है। रानी भी सोचती है शायद मेरे अच्छे और बुरे कर्मों का फल निश्चित है। तभी रानी का पति रानी की बाहों में भरकर पूछता है अरे कहां ख्यालों में कोई भी हो अब कुछ खाना भी लगा ले और रानी हंसते हुए किचन की है चल पड़ती है। मन ही मन मुस्कुराती है सच कर्मों का फल निश्चित है।
नीरज अग्रवाल चंदौसी उ.प्र
Mohammed urooj khan
16-Apr-2024 12:15 AM
👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾
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Gunjan Kamal
11-Apr-2024 03:52 PM
👌🏻👏🏻
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Varsha_Upadhyay
10-Apr-2024 11:45 PM
Nice
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